Ummid

 उम्मीद लिए बैठा हूँ कुछ फ़ैसला तो हो

ज़ाहिर सभी के सामने मेरी ख़ता तो हो


दिन ढले हर शाम उनको याद मेरी आना

ख़ुद से तो पूछ देखे दिल की रज़ा तो हो


क्या हद है परस्तिश की मालूम गर नहीं

मालूम दर सजदे का सिलसिला तो हो


उठते हैं क्यों सवाल मेरे होशो हवास पर 

तक़रीर किसलिए है, कोई मुद्दआ तो हो


खूब रही है इन दिनों आबोहवा इधर की

ज़िन्दा च़िराग रह सके इतनी हवा तो हो


कूचे के बन्द मुहाने पे खड़ा सोचता रहा

सूरत तो निकल आए कोई रास्ता तो हो


कश्ती भंवर में डाल दी ये सोचकर मैं ने

ये नाख़ुदा रहे न रहे, लेकिन ख़ुदा तो हो


पूछी है क़ज़ा से करम मुझपे कब होगा

हँसके कहा,जीने की भी इब्तिदा तो हो 


बेनाम सा ग़म दिल में पनाह कब पाया

हर दर्द की सूरत हो ,अपनी अदा तो हो


दुश्मनी कड़वी है, गर मान भी ली जाए

हमारी दोस्ती का, कोई ज़ायक़ा तो हो

(विवेक तिवारी)

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