प्रेमिका की प्रेम जाल

 पहला कदम मिलाके हम चले थे जनवरी में

   इश्क़ हुआ था गहरा मोहब्बत की फरवरी में


मार्च में खेल रहे थे, हम रंगों के संग होली

   बसंत भी आ गया था, बन अप्रैल में हमजोली


हम दुनिया भुला रहे थे, वादे मई में करके

   जज़्बात सुलग रहे थे, जून की आग में जलके


जुलाई हँस रही थी, इश्क़ के बैठ सिरहाने

   अगस्त ने चुटकी काटी, भ्रम में हैं दीवाने


फिर जाने क्यों सितम्बर, मायूस हो रहा था,

    कांटे दुःखों के शायद, अक्टूबर बो रहा था


इक आहट दे गया फिर, तेरे जाने की नवंबर, 

   और बिछड़ गए आख़िर, तुम, मैं

 और दिसंबर..!!


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